डीजीपी साहब का आगमन बना पीड़ितों के लिए जी का जंजाल! हां सुनने में भले ही आप को अजीब लगे मगर यह सत्य है ।
बीकानेर :-एसपी ने अपनी दबंगई दिखाते हुए एक साल से ज्यादा पुरानी पेंडिंग एफआईआर में एक साथ एफ आर लगाने का आदेश दे दिया, ताकि डीजीपी साहब को लगे कि पुलिस धड़ाधड़ काम कर रही है, कोई पेंडेंसी नहीं है, चलो इनको नंबर पूरे दे देते हैं।
डीजीपी साहब इससे अच्छा तो आप नहीं आते तो पीड़ितों को न्याय तो मिलता ।
और जब आ ही गए थे तो उस दिन राजस्थान पत्रिका में छपे लेख को पढ़कर जिला पुलिस कप्तान सिंघम साहिबा और उनकी टीम की क्लास लेते ।
आज एक दबंग पुलिस अधिकारी एक पीड़ित परिवादी को यह कहकर ढ़ाढ़स बंधाते हुए नजर आया कि देखो अभी डीजीपी साहब आए है ना इसलिए एसपी मैडम के कहने पर एक बार आपकी और अन्य लोगों की एफआईआर में एफ आर लगा दी है। अब जैसे ही डीजीपी साहब बीकानेर से जाएंगे तब मैं खुद एसपी मैडम से मिलकर आपकी फाइल को रि-ओपन करवा कर न्याय दिलाऊंगा।
वाह वाह क्या बात कही आपने!
आपने तो किसी इंसान की भावनाओं के साथ खेलकर उसकी भावनाएं ही मार दी।
अरे! आपने जिस इंसान को ये लॉलीपॉप वाला ढ़ाढ़स बंधाया उसी इंसान ने आज मुझे फोन कर कहा कि वकील साहब जिसने साथ बैठकर खाया पिया और आज सुबह तक मुझे यही कहता आया कि तेरे मामले में मुलजिमों को गिरफ्तार करूंगा, आज उसी ने धोखा देकर एफ आर लगा दी। ऐसे दोगले पुलिस अधिकारियों पे विश्वास करने से बेहतर है मैं अपनी जिंदगी कुर्बान कर लूं। और उस पीड़ित इंसान ने मुझे ये तक कह दिया कि मुझे यदि इंसाफ नहीं मिला मैं मर जाऊंगा सुसाइड कर लूंगा।
लेकिन कहते हैं ना जिसका कोई नहीं होता उसका वकील होता है, और मैंने अपना वकील धरम निभाते हुए उसे समझाया कि एफआर लगने से मामले खत्म नहीं हो जाते, एक सिंघम पुलिस अधीक्षक के आदेश दे देने मात्र से एफआर नहीं लग जाया करती।
इनके उपर भी कानून का शासन है और न्याय की अभी पहली सीढ़ी बंद हुई है अभी तो अंतिम सीढ़ी चढ़नी बाकी है।
और वो न्याय की अंतिम सीढ़ी डीजीपी साहब आप हो आप।
ऐसा सुनते ही पीड़ित परिवादी ने मरने का विचार त्याग कर तुरंत ही मुझे अपना सबकुछ मानते हुए कहा कि वकील साहब आप मुझे अभी उस आखिरी न्याय के देवता डीजीपी साहब से मिलवा दो ।
तो मैने भी उसकी भावनाओं को समझते हुए चल पड़ा डीजीपी साहब की ओर।
जैसे तैसे बीएसएफ रेस्ट हाउस आकर वहां आपकी सुरक्षा में खड़े गार्ड को डीजीपी साहब के नाम से ज्ञापन सौंपा तो उन सज्जन पुलिस साथी ने मेरे पीड़ित परिवादी के पत्र को डीजीपी साहब के मंदिर तक पहुंचाने का वादा किया।
अब डीजीपी साहब पीड़ित को न्याय मिलने की आस आप पर टिकी है ।
खैर सुखद अहसास मेरे लिए ये रहा की मैने आज अपनी वकालत का धर्म निभाते हुए किसी इंसान को तनाव में जाने से बचाया ।
क्यूंकि डीजीपी और आईजी साहब आपके एसपी और अधीनस्थ अधिकारी केवल मात्र पेंडेंसी कम करने के पीछे पड़े रहते हैं, उनको ये फर्क नहीं पड़ता कि जो फील्ड में लगे हुए पुलिस जवान जैसे कांस्टेबल हेड कांस्टेबल, मुंशीजी जैसे जवान केवल मात्र आपके टूल किट बनते जा रहे हैं ।
आपने उनको सिर्फ काम काम काम सिखाया है लेकिन आपने उनको तनाव से कैसे बाहर निकलना है ये नहीं सिखाया।
यदि यहां आप आकर बड़े सिंघम पुलिस अधीक्षक से बातचीत ना करके 24 घंटे रोड़ पर, थाने में, हाईवे पर गस्त करने वाले ऐसे जवानों के साथ कनेक्ट होकर और परिवार का मुखिया होने के नाते उनके दुःख दर्द को समझने के लिए एक शाम रात्रि भोज एसपी के निवास स्थान के बजाय एक शाम बीकानेर संभाग के सभी पुलिस जवान के नाम रखते और उनसे हंसी मजाक करते उनके बीच बैठकर खाना खाते ओर उनको तनाव से निकाल कर घर परिवार और खाकी से तालमेल करना सिखाते तो आपका आगमन सफल होता।
आपको पता चले कि इसी तनाव से आपका एक जवान काल का ग्रास बन गया , और वो पुलिस साथी आपकी मायावी टूल किट दुनिया से अलविदा हो गया जिसका मुख्य कारण रहा तनाव तनाव तनाव तनाव बस और बस सिर्फ मानसिक तनाव तनाव तनाव तनाव तनाव तनाव तनाव तनाव तनाव तनाव तनाव।
जिससे उबरने का रास्ता आपने भी शायद ही बताया होगा ।
और आपके बीकानेर की पावन धरती पर कदम रखने से पहले आपको जवान के विदा होने की सूचना मिल गई ।
जिसकी जिम्मेवार कहीं ना कहीं आपकी टूल किट पॉलिसी है जिसे बदलना होगा ।
खैर आपके आगमन की शाम को यादगार बनाने के लिए एसपी निवास कोठी नई नवेली दुल्हन की तरह चमक रही थी
और एक जवान के घर में सिसकियां निकल रही थी ।
ये शाम आपके जवान की याद में होती तो बात ही कुछ अलग होती ।
अंत में यही कहूंगा कि आज आपके सामने राजस्थान पत्रिका बीकानेर ने वो आइना दिखाया है जिसको आपकी सिंघम कप्तान शायद कभी ना पचा पाए ।
गौर करिए गा खबर पे और पीड़ित परिवादी की फरियाद पे और मेरे विचार पे।
अनिल सोनी एडवोकेट