500 वर्गमीटर तक के भूखण्डों पर मकान बनाने के लिए नक्शा पास करवाने की जरूरत नहीं, सरकार ने जनता को दी राहत
जयपुर, अशोक गहलोत सरकार 2 अक्टूबर से प्रदेशभर में ‘प्रशासन शहरों के संग' अभियान चलाएगी। इस बार सरकार अभियान में जनता को बड़ी राहत देगी। नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने आज विधानसभा में बजट अनुदान मांगों पर जबाब देते हुए बताया कि इस बार प्रशासन शहरों के संग अभियान में अनकंडीशनल पट्टे जारी किए जाएंगे। इससे लोगों को पट्टे पर बैंक लोन लेने में कोई समस्या नहीं आएगी। यही नहीं इस बार सरकार ने उन लाखों दुकान संचालकों को भी राहत देने का निर्णय किया है, जिनकी दुकानें आवासीय परिसर में बनी है। धारीवाल ने सदन में बताया कि इसके लिए नियमों में शिथिलता दी जाएगी। अभियान में और क्या-क्या बड़ी शिथिलताएं दी जा सकती हैं। इन शिथिलताओं के लिए क्या-क्या नियम बनाए जाएंगे इस पर अध्ययन किया जा रहा है। अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों संग इसको लेकर कुछ बैठकें भी बुलाई जाएगी, जिसमें इन पर चर्चा की जाएगी।
उन्होंने कहा कि गत कार्यकाल साल 2008 से 2013 तक जब अभियान चलाया था, तब सरकार कंडीशनल सशर्त पट्टे जारी किये गये थे। इस कारण जब उस पट्टे को लेकर भूखण्डधारी बैंक से निर्माण कार्य या खरीदने के लिए लोन लेने जाता था तो बैंक उस पट्टे की इसी सशर्त को देखकर लोन नहीं देते थे। समस्या को देखते हुए इस बार सरकार ने अभियान में सभी को अनकंडीशनल पट्टे जारी करने का निर्णय किया है। धारीवाल ने बताया कि गत कार्यकाल में हमारी सरकार ने इस अभियान के जरिए पूरे प्रदेश में 5 लाख लोगों को आवास के पट्टे जारी किए थे।
आवासीय कॉलोनीयों में बनी दुकानों के भी पट्टे देंगे।
इसके अलावा दूसरी सबसे बड़ी राहत उन दुकान संचालकों को मिलेगी, जिनकी दुकानें रिहायशी कॉलोनी में बसे आवासीय भूखण्डों पर बनी है। जयपुर की बात करें, तो मानसरोवर, राजापार्क, प्रताप नगर, गोपालपुरा बाइपास, बरकत नगर सहित कई सैकड़ों ऐसी कॉलोनियां है, जिनमें आवासीय भवनों में कॉमर्शियल एक्टिविटी (दुकान, शोरूम आदि) संचालित है। इन दुकानों का नियमन करते हुए उन्हें पट्टे देने की मांग पहले चलाए प्रशासन शहरों के संग अभियान में उठी थी। अब सरकार ऐसे मकानों के साथ-साथ उनमें संचालित दुकानों के भी नियमन करते हुए पट्टे जारी करेगी। हालांकि इस मामले पर फैसला अभी मंत्रीमंडल स्तर पर लिया जाएगा।
500 वर्गमीटर से 2500 वर्गमीटर तक के भूखण्ड पर नक्शा पास करवाने के लिए नगर निकायों के चक्कर काटने की जरूरत नहीं होगी। इसके लिए सरकार से पंजीकृत आर्किटेक्ट से नक्शा अनुमोदित कराकर निर्माण शुरू किया जा सकता है।
राज्य में किसी भी निकाय क्षेत्र में अगर आपके पास स्वयं का 500 वर्गमीटर तक का भूखण्ड है और उस पर आप अपने स्वयं के रहने के लिए आवास बनाना चाहते है, तो उस भवन की निर्माण अनुमति के लिए आपको किसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। राज्य सरकार ने 500 वर्गमीटर तक के भूखण्डों पर भवन मानचित्र पेश करने की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है। इससे प्रदेश के लाखों भूखण्डधारियों को बड़ी राहत मिलेगी।
नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने बताया कि इससे पहले सरकार ने 250 वर्गमीटर तक के भूखण्डों पर ही भवन निर्माण के लिए नक्शा पेश करने की छूट दे रखी थी, लेकिन अब इस दायरे को बढ़ाकर 250 से 500 वर्गमीटर कर दिया। उन्होंने बताया कि राज्य के कई छोटे-छोटे शहरों में लोगों के पास बड़े भूखण्ड (250 वर्गमीटर से बड़े) है, जिन पर आवास बनाने के लिए लोगों को नक्शा पास करवाना पड़ता है, जिसके लिए उन्हे नगरीय निकायों (नगर पालिका, परिषद, यूआईटी या विकास प्राधिकरण) के चक्कर काटने पड़ते है। लोगों की इसी समस्या को देखते हुए सरकार ने यह निर्णय लिया है। धारीवाल ने कल राज्य विधानसभा में इसको लेकर घोषणा भी की है।
90 वर्गमीटर तक सैटबेक छोड़ने की नहीं है कोई जरूरत
राजस्थान बिल्डिंग बायलॉज 2020 में राज्य सरकार ने प्रावधान किया है कि अगर किसी भी व्यक्ति के पास 90 वर्गमीटर (लगभग 100 वर्गगज) तक का अगर भूखण्ड है तो उसे सैटबैक छोड़ने की जरूरत नहीं है। इन भूखण्डों पर निर्माण करने वाले लोगों को सैटबेक छोड़ने के नाम पर अक्सर परेशान किया जाता है। इसे देखते हुए सरकार ने सैटबेक छोड़ने की अनिवार्यता को खत्म किया है।
दो दिन पहले परिवहन मंत्री ने जताई थी नाराजगी
दो दिन राज्य सरकार के परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने नगर निगम हैरिटेज के एक कार्यक्रम में आवास निर्माण के दौरान नगर निगम, जेडीए के सतर्कता विंग की ओर से की जाने वाली कार्यवाही पर सवाल उठाए थे। खाचरिवास ने मंच से कहा था कि जयपुर में छोटे-छोटे मकान बनाने वाले गरीब लोगों को विजीलेंस शाखा के कर्मचारी-अधिकारी अवैध निर्माण बताकर परेशान करते है। उन्होंने कहाा था कि विजीलेंस को अगर छोटे-छोटे मकानों पर कोई कार्यवाही करनी है तो उसे पहले स्थानीय पार्षद, विधायक या कोई अन्य जनप्रतिनिधि को विश्वास में लेना चाहिए।