समन्वित कृषि पद्धति अपनाने से आय में बढ़ोत्तरी की प्रबल संभावनाएं’-डॉ.साहू

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बीकानेर बुलेटिन




बीकानेर, 10 अगस्त।  जनजातीय क्षेत्रों के पशुपालकों हेतु स्थानीय स्तर पर उपलब्ध दूध, पशु और कृषि उपज के विपणन की उचित व्यवस्था करने पर उन्हें इस व्यवसाय को ठोस आधार देने में अधिक सुविधा मिल सकेगी। साथ ही पशुपालक, यदि समन्वित कृषि पद्धति की ओर अपना रूझान बढ़ाएं तो इससे उनकी आय में बढ़ोत्तरी की प्रबल संभावनाएं विद्यमान हैं।

ये विचार भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने मंगलवार को गांव मोरड़ू, आबू रोड़ सिरोही में आयोजित पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किए गए।
एनआरसीसी द्वारा जनजातीय उप-योजना तहत आयोजित इस कैम्प में मोरड़ू गांव के 104 महिला एवं पुरुष पशुपालकों ने अपने पशुओं (गाय 95, भैंस 122, बकरी 233, भेड़ 12, मुर्गी 55) सहित सक्रिय सहभागिता निभाते हुए शिविर में प्रदत्त पशु स्वास्थ्य सुविधाओं का भरपूर लाभ लिया। डॉ.साहू ने कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम में पशुपालकों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में पशुपालक मुर्गी, दुग्ध उत्पादन हेतु भैंस व गाय एवं मांस उत्पादन के लिए बकरी एवं भेड़ पालन कर रहे हैं। साथ ही कृषि में ज्वार, मक्का, अरण्डी, मूंग दाल और गेहूं, गन्ना व सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं। ऐसे में खेती एवं पशुपालन की मिली-जुली यह व्यवस्था समन्वित कृषि के लिए अधिक उपयुक्त मानी जा सकती है। उन्होंने कृषि एवं पशुपालन से संबंधित विभिन्न पहलुओं एवं चुनौतियों की ओर भी पशुपालकों का ध्यान इंगित किया।

राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में चल रही इस टीएसपी योजना के नोडल अधिकारी डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने इस अवसर पर पशुपालकों को स्वच्छ दूध उत्पादन के महत्व के बारे में उपयोगी जानकारी देते हुए इसके विभिन्न लाभ गिनाए। डॉ. सावल ने बताया कि कैम्प के दौरान महिला पशुपालकों को पशुओं के थनों को उचित तरीके से धोने हेतु पानी का फव्वारा, थन की सफाई हेतु मुलायम कपड़ा और दूध छानने के लिए मलमल का गमछा वितरित किया गया। इस अवसर पर पशुपालकों को केन्द्र में निर्मित पशुओं के पौष्टिक आहार (संतुलित पशु आहार) व खनिज मिश्रण का भी वितरण किया गया।

कृषकों से संवाद करते हुए केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. मो.मतीन अंसारी ने पशुओं की शारीरिक क्रियाओं एवं विद्यमान क्षमताओं के संबंध में कहा कि पशुओं की धीमी शारीरिक वृद्धि एवं कम दुग्ध-उत्पादन क्षमता की ओर पशुपालकों द्वारा विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। वहीं पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. काशी नाथ ने शिविर में लाए गए पशुओं की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पशुओं में ज्यादात्तर चींचड़, भूख कम लगना, पेट में कीड़े पड़ने आदि रोग देखे गए, जिनके उपचार हेतु पशुओं को दवा दी गई।

जनजातीय क्षेत्र के श्री सेवाराम, सदस्य, पशु कल्याण समिति, सिरोही ने भारत सरकार की जनजातीय उपयोजना के महत्व का जिक्र करते हुए इसके सफल क्रियान्वयन में एनआरसीसी की सक्रियता को सराहा। साथ ही उन्होंने क्षेत्र के लोगों को सरकारी योजनाओं के भरपूर लाभ हेतु शैक्षणिक स्तर में सुधार लाए जाने की बात कही।

एनआरसीसी वैज्ञानिकों ने मोरडू़ एवं आस-पास क्षेत्र की करीब 25 वनस्पतियों यथा-जंगली व मौसमी पौधे, घास-झाड़ियों, जिन्हें यहां के पशु बड़े चाव से चरते हैं, की पौष्टिकता एवं पशु आहार आवश्यकता की दृष्टि से जांच हेतु नमूने लिए। मोरड़ू में आयोजित इस पशु स्वास्थ्य कैम्प में केन्द्र के मनजीत सिंह ने पशुपालकों के पंजीयन, उपचार, दवा व पशु आहार वितरण जैसे विभिन्न कार्यों में सक्रिय सहयोग प्रदान किया गया।

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