मुगलकालीन लेखकों ने हल्दीघाटी युद्ध में एकपक्षीय चित्रण किया:- डॉ दिलबाग सिंह
अमेरिका, यूरोप,ऑस्ट्रेलिया आदि महाद्वीपों में आज भी नारी जाति को प्रताप की प्रेरणा से सम्मान की दृष्टि से लिया जाता है - डॉ रूपा जड़ेजा
काठियावाड़ वर्षो से घोड़ों के व्यापार का प्रसिद्ध केंद्र रहा, यहीं से था चेतक - डॉ प्रद्युम्न खाचर
मेवाड़ क्षत्रिय महासभा, मेवाड़ एवम् महाराज शत्रु दमनसिंह शिवरती विद्यापीठ संस्थान, उदयपुर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी महाराणा प्रताप:पुराण पुरुष विषय को समेटे हुए गुरुवार को संपन्न हुई जिसमें बीकानेर की इतिहासकार डॉ मेघना शर्मा ने सह संयोजक की भूमिका को निर्वाह किया।
सरंक्षक व मेवाड़ क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष शक्तिसिंह कारोही ने गोष्ठी वक्ताओं, इतिहासविद ओर प्रबुद्ध देश विदेश से भाग लेने वाले प्रारम्भ में स्वागत उद्बोधन दिया।
इतिहासकार डॉ जी एल मेनारिया ने प्रताप पुराण पुरुष पर विषय प्रवर्तन कर कहा कि भारतीय वैदिक परम्परा अनुसार जो युगावतार कि धारणा हमारे महाकाव्यों एवम् तत्पश्चात पुराणों में मिलती हैं, इसी से प्रेरित होकर इस शताब्दी के महान इतिहासकार ए .जे .टॉयनबी ने इतिहासवाद के चकरात्मक सिद्धांत प्रतिपादित किया है जो हमारे पुराणों के मन्वन्तर के रूप में प्रसिद्ध है ,वस्तुत हमारे देश मे ऐसे चौबीस मनु हुए जिनका एक युग होता है ऐसे चार युग हुर्चे ,जैसे, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवम् कलयुग । भगवान राम सतयुग का महा नायक है तो कृष्ण द्वापर मे हुए ,महाभारत काल के पश्चात युधिष्ठिर के राज्यारोहण से हिन्दू संवत प्रारम्भ हुआ जिसमे महाराणा प्रताप पुराण पुरुष के रूप में स्तुति रहेंगे।
पद्मश्री महाराव रघुवीर सिंह जी सिरोही ने कहा कि मेवाड़ के सूर्यवंश के कुल दीपक महाराणा प्रताप ने अपने पूर्वजों आदर्शो व पदचिन्हों पर चलते हुए सनातन धर्म ओर संस्कृति कि रक्षा के लिए एक हजार वर्षों कि विदेशी दासता से मुक्ति पाने के लिए मुगल सत्ता के विरुद्ध पच्चीस वर्षो तक निरंतर एशिया के शक्तिशाली व संपन्न सम्राट अकबर से टककर ली।
आयोजन सचिव डॉ अजात शत्रु सिंह शिवरती ने बताया कि गोष्ठी मे कार्यक्रम की सह संयोजिका बीकानेर के एमजीएसयू की इतिहासकार डॉ मेघना शर्मा ने प्रताप पर लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों की पंक्तियों के उद्घोष के साथ अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करते हुए संगोष्ठी को संचालित किया।
ऑस्ट्रेलिया से डॉ रूपाबा जडेजा ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप राष्ट्र धर्म का जीवन पर्यन्त पालन किया ,इसलिए उनका नाम महापुरुषों के रूप में लिया जाता है।
नॉर्वे के टॉर गुलब्रेडसेन ने बताया कि हल्दीघाटी भारत की थरमोपल्ली है ओर दिवेर मैराथन है। जेएनयू दिल्ली के प्रसिद्ध इतिहास प्रो दिलबाग सिंह के अनुसार महाराणा प्रताप ओर अकबर के बीच हुए युद्ध के बारे में बताया कि हल्दीघाटी युद्ध के बारे में मुगलकालीन लेखकों ने मुगल की विजय पक्षपात से प्रेरित बताया ,जबकि मेवाड़ के ऐतिहासिक ग्रंथो अमरकाव्य आदि साक्ष्यों के आधार पर प्रताप की निश्चय ही विजय हुई।
संगोष्ठी के सरांक्ष्क व अखिल भारतीय क्षत्रिय सभा के कार्यकारिणी सदस्य एवम् शिक्षाविद प्रो दरियाव सिंह चूंडावत ने बताया कि महाराणा प्रताप क्षत्रिय जाती के गौरव एवम् गरिमा का निर्वाह करते रहे है।मेवाड़ के शत्रियो ने समय समय पर देश की सुरक्षा एवम् सनातन धर्म ओर संस्कृति की रक्षा कर बलिदान दिया है।सभी निर्णायकों युद्ध( हरावल ) मे रहने वाले ऐसे वर्ग के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
जयपुर से डॉ करन मीणा ने कहा कि प्रताप ने जो स्वाधीनता कि लड़ाई लड़ी व किसी धर्म,जाती ओर नस्ल के विरुद्ध नहीं थी,क्योंकि हल्दीघाटी दिवेर के युद्ध में सभी जातियों ,धर्म यहां तक की जनजाति की अहम भूमिका रही है, इसी लिए प्रताप के समस्त संघर्ष जनसहयोग से लडे गए।इसी कारण प्रताप देश का नायक ही नहीं महानायक के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। उत्तर प्रदेश की डॉ प्रतिमा शुक्ला ने बताया कि चित्तौड़ वीर भूमि तथा हल्दीघाटी तीर्थस्थल है, जहां की मिटटी चंदन है।
काठियावाड़ डॉ प्रधुमन खाचर ने कहा कि हमे गौरव है की प्रताप का घोड़ा चेतक ओर नाटक जी जूनागढ़ ( काठियावाड़) चोटिला के नस्ल के थे।हम गुजरात वासियो को इससे गर्व है।
आंध्रप्रदेश एलोरू से डॉ इस्थर कल्याणी,हिमाचल प्रदेश से डॉ शारदा देवी ने भी विचार रखे। ओडिशा के डॉ हेमंत परिदा ने बताया कि प्रताप के चरित्र मूल्य ओर उसके उज्वल कार्यों का गुजराती,मराठी,बंगला,कन्नड़,तेलगु, राजस्थानी,उर्दू इत्यादि भाषाओं मै मिलता है ,जिनमें प्रताप का शोर्य,स्वाभिमान ,देश प्रेम , सहिष्णुता,इत्यादि मानवीय मूल्य प्रतिबिंबित होते हैं।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के प्रोफेसर जेसी उपाध्याय जी ने बताया कि प्रताप की राष्ट्रीय सेना थीं जिसमे हकीम खां,राजा पूंजा,,झाला मान, इन सब को मिलाकर एक राष्ट्रीय सेना बनाई थी, जिसे अकबर के अस्सी हजार सैनिक भी पराजित नहीं कर सके।प्रताप के चितौड़ छोड़ने से गाडियां लोहार भी चित्तौड़ छोड़कर भारत के अन्य भागों में चले गए।
मीडिया प्रभारी रणवीर सिंह जोलवास ने संगोष्ठी के अंत में यह पंक्तियां पढ़ कर प्रताप के जीवन मूल्यों को आत्मसात करने की दृष्टि से प्रसिद्ध साहित्यकार हरिकृष्ण की कविता पढ़ी। धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक व मेवाड़ क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष यादवेंद्र सिंह रलावता ने दिया।
इस संगोष्ठी में देश विदेश से आए इतिहासकार,शिक्षाविद व प्रबुद्ध चिंतक जैसे ,सलिला मोहंती व डॉ अनुराधा पत्रे ( ओडिशा), इंदौर राजपूत क्लब से रघुराज चौहान, लेफ्टिनेंट जनरल वीके सिंह, डॉ संभवी जाधव महाराष्ट्र, डॉ सुधीर कुमार गोरखपुर, प्रो अरविंद कुमार उत्तराखंड, डॉ धनंजय सिंह अमेठी, डॉ के एस राठौड़ उत्तरप्रदेश, प्रीतम सिंह चूंडावत हरिद्वार, डॉ हरीश राव गुजरात, डॉ जीशान अहमद मुंबई, डॉ नमामि शंकर आचार्य बीकानेर, डॉ गोपाल व्यास, डॉ देव कोठारी, डॉ ललित पाण्डेय, डॉ राजेंद्र नाथ पुरोहित, इंदर सिंह राणावत, मुकेश मेनारिया, परेश्वर साहू ओडिशा शामिल रहे।