बीकानेर। यहां गंगानगर रोड पर झुग्गी झौपड़ी में रहने वाले चार बच्चे सोमवार शाम को गायब हो गए। रात को पुलिस को सूचना दी गई तो हडकंप मच गया। पुलिस अधीक्षक से लेकर थाने के कांस्टेबल बच्चों को ढूंढने में लगे रहे। रातभर तो कोई सफलता नहीं मिली, लेकिन सुबह ये बच्चे एक खराब हुई कार में फंंसे हुए मिल गए।
दरअसल, यह बच्चे सोमवार शाम छह बजे गायब हो गए थे। घर वाले इन्हें इधर-उधर ढूंढते रहे लेकिन कहीं नजर नहीं आये। रात करीब आठ बजे बीछवाल थाने को इस आशय की सूचना दी गई। जहां से मामला पुलिस अधीक्षक प्रीति चंद्रा तक पहुंच गया। एसपी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए खुद मौके पर पहुंची। चारों बच्चों के माता-पिता से बात करके इधर-उधर छानबीन की गई। आसपास के सीसीटीवी कैमरे भी खंगाले गए। एक जगह तक तो बच्चे नजर आ रहे थे लेकिन इसके बाद नहीं दिखे।
रात भर चले सर्च अभियान के बाद भी सफलता नहीं मिलने से पुलिस के हाथ पांव फूलने लगे। एक बार फिर पुलिस अधीक्षक ने क्षेत्र का दौरा किया। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शैलेंद्र सिंह के साथ सीओ सदर पवन भदौरिया व थानाधिकारी मनोज शर्मा भी बच्चों को ढूंढने में लग गए। सुबह पुलिस ने एक-एक घर में छानबीन शुरू की। इसी दौरान एक खाली पड़े बाड़े में खड़ी बस से खट खट की आवाज सुनाई दी। एक पुलिसकर्मी ने अंदर कूदकर कार को देखा तो चारों बच्चे यहीं थे।
ये चार बच्चे हुए थे लापता
भारत बाजीगर पुत्र मदनलाल बाजीगर उम्र सात साल, कृष्ण पुत्र रीटू उम्र साढ़े चार साल, रिहान पुत्र रिटू उम्र ढाई साल, जासमीन पुत्री राकेश कुमार उम्र आठ साल। इनमें भारत बीदासर का स्थायी निवासी है जबकि शेष तीनों हनुमानगढ़ के रहने वाले हैं। फिलहाल यह सभी समता नगर के पास बनी झुग्गी झौपडिय़ों में रहते हैं।
ऑटो लॉक हो गई थी कार
दरअसल, कल शाम को बच्चे खेलते खेलते इस कार में पहुंच तो गए लेकिन बाहर नहीं निकल सके। यह कार पुरानी थी लेकिन इसमें ऑटो लॉक था। बच्चों ने कार को खोलने का बहुत प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हुए। ऐसे में रोते-रोते रात को कार में ही जैसे-तैसे सो गए। सुबह उठकर फिर कार खोलने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। इस पर जोर जोर से कार को खटखटाने लगे। इसी से पुलिसकर्मी ने उन्हें बचा लिया।
बंद बाड़े में कैसे पहुंचे ?
बच्चों ने बताया कि इस बाड़े के अंदर जाने के लिए टूटी हुई दीवार से गए थे। अंदर काफी देर तक खेलते भी रहे लेकिन बाहर नहीं निकल पाये। पुलिस को भी ये टूटी दीवार नजर नहीं आई, लेकिन बच्चों के लिए यह नियमित रास्ता था।