बीकानेर@ इतिहासकार एवं स्तम्भकार रवि भट्ट ने कहा कि देश में इंजीनियर, डॉक्टर, साहूकार आदि की गलती का खामियाजा कुछ सौ या हजार लोग भोगते हैं किन्तु इतिहासकार गलत लिखता है तो इसका खामियाजा पीढ़ी दर पीढ़ी भोगा जाता है और हिन्दू मुस्लिम का मसला इसका ज्वलंत उदाहरण है। किन्तु लखनऊ के नवाब आधुनिक इतिहास में सदैव धर्मनिरपेक्षता के लिए जाने गए।
श्री भट्ट शुक्रवार को महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में ‘‘डायनेस्टिक इवोल्युशन ऑफ द नवाब्स ऑफ लखनऊ‘‘ विषय पर मुख्य अतिथि एवं वक्ता के रूप में व्याख्यान दे रहे थे। उन्होने अवध के राजनैतिक पहलू से हटकर सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और कलात्मक पक्षों को विस्तारपूर्वक रखा।
वेबिनार समन्वयक, इतिहास विभाग की सहायक आचार्य डॉ. मेघना शर्मा ने संगोष्ठी का संचालन करते हुए मुख्य वक्ता का परिचय देते हुए कहा कि लखनऊ नफासत, नज़ाकत और तहजीब के लिए अपनी एक अलग पहचान रखता है और आधुनिक भारतीय इतिहास के विकास चरणों में लखनऊ (अवध) के नवाब की महत्वपूर्ण भूमिका दर्ज रही है।
स्वागत भाषण विभागाध्यक्ष व वेबिनार निदेशक डॉ अंबिका ढाका ने पढ़ा। उन्होंने बताया कि वेबिनार में तीन सौ से अधिक पंजीकरण हुए जिनमें देश-विदेश से इतिहास प्रेमियों ने भाग लिया साथ ही विद्वानों व शोधार्थियों ने मुख्य वक्ता से प्रश्न भी पूछे।
मुख्य वक्ता भट्ट ने अवध में घटित एक वाकिये पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जब कट्टरपंथी जिहादियों ने हनुमानगढी पर आक्रमण किया तब नवाब ने मुस्लिम होते हुवे भी जिहादियों से हनुमानगढी की रक्षा की। उन्होंने बताया कि नवाबों ने हिन्दु एवं मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों के साथ सद्भाव रखा और होली के त्यौहार पर वे लगभग 5 लाख रूपये तक का धन व्यय करते थे।
बीकानेर से अवध के सम्पर्क के बारे में उन्होंने बताया कि जब नवाब वजीर अली शाह ने अंग्रेजों से अवध को मुक्त करवाने के लिए इरान से सम्पर्क साधा था उस समय अवध से भेजे गए धन को बीकानेर की सीमा में बीकानेर के राजा ने सुरक्षा एवं सेना प्रदान की थी। 1857 की क्रांति पर प्रकाश डालते हुए भट्ट ने बताया कि उस समय अंग्रेजों के विरूद्ध अपनी सीमा की सुरक्षा की जो युद्ध नीति नवाबों द्वारा अपनाई गई थी वह ना केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय रही। उमर खय्याम की रूबाईयों से प्रेरित होकर ही हरिवंश राय बच्चन ने ‘‘मधुशाला‘‘ की रचना की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. विनोद कुमार सिंह ने कहा कि इतिहास सामाजिक विज्ञान के विषयों में एक ऐसा गंभीर विषय है जो अपनी व्यापकता और सभी विषयों से एक कड़ी के रूप में जुड़ा हुआ है। प्रो. सिंह ने कहा कि लखनऊ के इतिहास की भारत के इतिहास में एक समृद्ध पृष्ठभूमि रही है जिसमें शोध के अनेक आयाम हैं।
आयोजन में डूंगर कॉलेज से डॉ. अनिला पुरोहित, डॉ. सुखाराम, डॉ. उषा लामरोर, डॉ. शारदा शर्मा, भरतपुर से डॉ. सतीश त्रिगुणायत, दिल्ली से डॉ. अनिल कुमार, डॉ. संदीप सिंह मुंडे, डॉ. बसंती हर्ष, डॉ. अशोक बिश्नोई सहित अनेक शोधार्थी एवं विद्यार्थी जुडे़।
अंत में संगोष्ठी समन्वयक डॉ मेघना शर्मा ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।