पवन व्यास ने बांधी विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी

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बीकानेर / राजस्थान, राजस्थान सम्पूर्ण राष्ट्र में अपनी संस्कृति तथा प्राकृतिक विविधता के लिए पहचाना जाता है। राजस्थान के रीति- रिवाज, यहां की वेशभूषा तथा भाषा सादगी के साथ-साथ अपनेपन का भी अहसास कराते है। राजस्थान के लोग रंगीन कपड़े और आभूषणों के शौकीन होते हैं। राजस्थान के समाज के कुछ वर्गों में से कई लोग पगड़ी पहनते हैं, जिसे स्थानीय रूप से साफा, पाग या पगड़ी कहा जाता है।
पगड़ी राजस्थान के पहनावे का अभिन्न अंग है। बड़ो के सामने खुले सिर जाना अशुभ माना जाता है। यह लगभग 18 गज लंबे और 9 इंच चैड़े अच्छे रंग का कपड़े के दोनों सिरों पर व्यापक कढ़ाई की गई एक पट्टी होती है, जिसे सलीके से सिर पर लपेट कर पहना जाता है। पगड़ी सिर के चारों ओर विभिन्न व विशिष्ट शैलियों में बाँधी जाती है तथा ये शैलियां विभिन्न जातियों और विभिन्न अवसरों के अनुसार अलग-अलग होती है। रियासती समय में,पगड़ी को उसे पहनने वाले की प्रतिष्ठा (आन) के रूप में माना जाता था। कवि भरत व्यास भी कहते है कि –
जब तक मरू की संतान रहे, इस पगड़ी का सम्मान रहे।
मरूधर के बच्चे – बच्चे को अपनी पगड़ी पर नाज रहे।।
यही पगड़ी वही पुरानी है, सब ही चीर पहचानी है ।
बीते गौरव के गाथा की केवल यही बची निशानी है।।

लूप्त राजस्थानी संस्कृति बचाने का एक अथक प्रयास
इसी ऐतिहासिक परम्परा को आगे बढ़ाने का जिम्मा ऊठाया है बीकानेर के कलाकार पवन व्यास ने, व्यास पहले भी अंगुलीयों पर सबसे छोटी राजस्थानी पाग – पगड़ीयां बांध कर विश्व में बीकानेर – राजस्थान का नाम रोशन कर चुके है।

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