बीकानेर, 24 मार्च। राजस्थान सरकार की ओर से पारित किए गए राइट टू हेल्थ अधिनियम सरकार का चुनावी वर्ष का जनता को भ्रमित करने का नया शिगूफा और निजी छोटी चिकित्सालयों को बंद करवाना, चिकित्सा सुविधा मे निर्धारित जी.डी.पी. का छह प्रतिशत की जगह एक प्रतिशत खर्च करने के प्रकरण को छुपाना है। राजस्थान सरकार की राज्य की जनता को स्वास्थ्य का अधिकार देने की अक्षमता है।
यह बात शुक्रवार को सार्दुल गंज के आयुष्मान हार्ट केयर सेंटर में राजस्थान सरकार की ओर से पारित राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में अखिल राजस्थान प्राइवेट चिकित्सक संघर्ष समिति की बीकानेर इकाई की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी गई। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, बीकानेर इकाई सचिव डाॅ.विकास पारीक, अखिल राजस्थान प्राइवेट चिकित्सक संघर्ष समिति की बीकानेर इकाई अध्यक्ष डाॅ.दीप्ति वाहल, सचिव शैफाली दाधीच, डाॅ. बी.एल.स्वामी व डाॅ.गौरव गोम्बर और डाॅ.अरुण तोणगरिया ने संवाददाताओं के सवालों के जवाब दिए। डाॅ. विकास पारीक ने संवाददाता में बताया कि सरकार ने अपनी नाकामी को छुपाने के लिए निजी चिकित्सा क्षेत्र के कंधे पर बंदूक रखकर इस बिल को बनाया है जिससे सरकार इस प्रकार से प्रदर्शित करना चाहती है कि चिकित्सक जनता के शत्रु है और प्राइवेट अस्पताल इस बिल को रोकना चाहती है जबकि इस बिल के अंदर इतनी विसंगतियां है कि इस बिल से निजी अस्पतालों के साथ-साथ आम जनता का भी बहुत बड़ा नुकसान है। अभी तक इस बिल कानून नहीं बना है फिर भी सरकार ने विज्ञापन शुरू कर दिया है, जिससे भ्रमित होकर आम जनता को यह लग रहा है कि सरकार ने उन्हें बहुत बड़ा तोहफा दिया है, जबकि यह सरासर झूठ है। हमारा सरकार का सवाल है कि जब इस बिल के अंदर काम करने वाले लोग चिकित्सक है उनको विश्वास में लिए बिना कैसे इस बिल का लागू करने का प्रयास किया जा रहा है और चिकित्सकों की भावनाओं का निरादर करते हुए उनसे एक बार भी वार्ता की कोशिश नहीं की जा रही है अपितु उन्हें अलग-अलग संस्थाओं की तरफ से धमकाया जा रहा है। कोई भी चिकित्सक गन पोईन्ट पर रहकर चिकित्सा सेवा नहीं कर सकता । चिकित्सकों चलाएं जा रहे शांतिपूर्ण तरीके से चलाए जा रहे आंदोलन को दमनात्मक तरीके से लाठीचार्ज करना शर्मनाक है। सभी चिकित्सक लाठी चार्ज की निंदा करते है साथ ही कोटा में शांतिपूर्वक सुन्दरकांड पाठ करने वाले चिकित्सक को घसीट कर पुलिस द्वारा आधिरात को जबरदस्ती ले जाना अत्यंत निंदनीय व भत्र्सना योग्य है। चिकित्सकों ने महिला आयोग से अपील कि इस घटना का संज्ञान लेकर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करें।
संवाददाता सम्मेलन में बताया गया कि सरकार द्वारा चिकित्सकों को बार-बार यह ज्ञान दिया जा रहा है कि चिकित्सा सेवा कार्य है, लेकिन सरकार से यह कोई क्यों नहीं पूछता कि राज्य की जनता के उत्तम स्वास्थ्य का दायित्व सरकार का है,ना कि निजी चिकित्सा संस्थाओं का । निजी चिकित्सक यह बात इसलिए कहना चाहते है क्योंकि सरकार ने आज तक निजी चिकित्सा संस्थानों से वाणिज्यिक दर पर बिजली, पानी, फायर सुविधा से ले रही वहीं कई.अस्पतालों में जी.एस.टी. भी वसूल रही है। निजी चिकित्सकों को सरकार सेवाभावी नहीं मानते हुए व्यवसाय मानकर उसका शोषण कर रही है।
संवाददाता सम्मेलन में बताया गया कि भारत सरकार की आयुष्मान योजना को राजस्थान सरकार ने चिरंजीवी योजना का नाम दिया है । केन्द्र सरकार व राज्य सरकार ने एक बीमा एजेन्सी से टाई अप कर राज्य सरकार चिरंजीवी योजना के माध्यम से करोड़ों रुपए का राजस्व सरकारी अस्पतालों से वसूल कर रही है तथा केन्द्र सरकार को अंगूठा दिखा रहे है। शिक्षा-चिकित्सा में सरकार अपने दायित्व के अनुसार जनता के लिए व्यय नहीं कर जनता को गुमराज किया जा रहा है । संवाददाता सम्मेलन में बताया गया कि सरकार ने चिरंजीवी योजना, भामाशाह योजना व आर.जी.एच. के बकाया करोड़ों रुपए की राशि का भुगतान निजी अस्पतालों को पिछले पांच-छःह वर्षों से नहीं कर रही है।
संवाददाता सम्मेलन में बताया कि राइट टू हैल्थ बिल में केवल दुर्घटना व प्रसव के समय अमरजेन्सी सुविधा देने की के बारे में विवरण दिया गया है, दूसरी चिकित्सा सुविधाओं के बारे में समस्त अधिकार राज्य प्राधिकरण के पास रखे है, जिनके बारे में किसी भी का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। जबकि विज्ञापित किया जा रहा है कि सभी चिकित्सा सुविधा निजी अस्पतालों में इस बिल के बाद निःशुल्क सुलभ करवाई जाएगी। मानवीय आधार पर हर चिकित्सक दुर्घटनाग्रस्त को मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है, चिकित्सकों ने हर प्रयास से दुर्घटनाग्रस्त को बचाने का प्रयास किया है।
संवाददाता सम्मेलन में बताया गया कि पी.बी.एम.अस्पताल सहित राजस्थान की सरकारी अस्पतालों निःशुल्क इलाज का बहाना बनाकर सरकार करोड़ों का राजस्व, चिरंजीवी योजना, आर.जी.एच.एस. के माध्यम से वसूल रही है। यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक हमारी मांगें नहीं मानने और इस काले कानून को वापस नहीं ले लें। इस आंदोलन में विभिन्न संस्थाओं रेजीडेंट डाक्टर एसोसिएशन, सेवारत चिकित्सा संघ, मेडिकल काॅलेज टीचर एसोसिएशन, पैरा मेडिकल एसोसिएशन, लैब एसोसिएशन, केमिस्ट एसोसिएशन और कई सामाजिक एवं स्वयं सेवी संस्थाओं का सहयोग मिल रहा है।