शिवरती विद्यापीठ संस्थान एवम् तक्षशिला विद्यापीठ संस्थान,उदयपुर के सयुक्त तत्वाधान में रविवार को "इतिहास दर्शन व इतिहास लेखन के विभिन्न आयाम", विषय पर ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार संपन्न हुई जिसमें बीकानेर का प्रतिनिधित्व करते हुए एमजीएसयू की डॉ मेघना शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए।
प्रारम्भ मे वेबिनार का विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. के. एस. गुप्त ने कहा की मराठा इतिहास बक्खर मे मिलता है, तो गुजरात का इतिहास रासो साहित्य( रासमाला) व आसाम के अहोम वंश के राजाओं का इतिहास हेतु चीन से मंगोल कुलीन विद्वानों से इतिहास लिखवाते थे, जिसको बूरिंज कहते है। अरब लेखकों द्वारा लिखा इतिहास को ईबर कहते है। मुस्लिम युग में इतिहास ग्रंथो को फारसी भाषा में तवारिख लिखने की परम्परा थी।
संयोजक डॉ अजात शत्रु सिंह शिवरती ने कहा कि इतिहास नवीन आयाम वैश्विक दृष्टिकोण लेखकों को स्मरण कराया की अब जब सारे विश्व में प्रजातांत्रिक व लोकतांत्रिक व्यवस्था है, तो ऐतिहासिक तथ्यो को पारदर्शिता और विश्वसनीयता के साथ हमारे अतीत का इतिहास लिखा जाना चाहिए। इतिहास निष्पक्षता से लिखा जाना चाहिए।
बीकानेर से इतिहासविद डॉ मेघना शर्मा ने कहा कि इतिहासकार टॉयानबी के अनुसार दो विश्व युद्धों के पश्चात विश्व मे सयुक्त राष्ट्र 1945 मे बनने के यूरोप के प्राचीन सम्राज्यवाद का स्थान चीनी एवम् अमेरिका सम्राज्यवाद ने ले लिया । विश्व में परमाणु शस्त्रों की होड़ ,तकनीकी व औद्योगिकीकरण के साथ जैविक - रासायनिक अस्त्र शस्त्र के कारण सारी धरती पूंजीवादी व साम्यवादी ,राष्ट्रवादी प्रवर्तियो मे बंट गया है ऐसा प्रतीत होता है कि हमने इतिहास से कोई शिक्षा नहीं ली है, इसलिए अधीनायकवाद,उग्रराष्टवाद, आतंकवाद, जतियवाद, नस्लवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद तथा संप्रदाय वादी प्रवृत्तियां पुनः अपनी जड़े मजबूत करती जा रही है।
वरिष्ठ पुरातत्ववेता डॉ ललित पांडे ने बताया कि आधुनिक काल मे भारतीयों मे इतिहास लेखन की जिज्ञासा जाग्रत करने का श्रेय अंग्रेजो को है जब वारेन हेस्टिंग्स ने रॉयल एशियाटिक सोसायटी बनाई ओर जेम्स प्रिंसप ने ब्राह्मी पढ़ी।
नॉर्वे के इतिहासकार टोर गुलब्रांडसेंन ने कहा कि मध्य एशिया में मिश्र व मेसोपोटामिया तो भारत में सिंधु - हड़प्पा -सरस्वती -घाटी सभ्यताए जो अब पुरातत्ववेताओ के खोज का विषय रह गई है,अभी तक हम हड़प्पा लिपि हो अथवा मिश्र की हायरोग्लेल्फिक लिपि हो चाहे मेसोपोटामिया की क्यूनिफॉर्म लिपि हो इनको पढ़ना कठिन है।
स्वीडन की अंजना सिंह ने कहा कि प्रथम महायुद्ध के पूर्व सन 1914 मे अर्नोल्ड जोसफ टॉयानबी ने अपनी पुस्तक इतिहास एक अध्ययन दस खंडों में लिखी थी, इसमें विश्व कि प्राचीन सभ्यताओं का तुलनात्मक अध्ययन के साथ यह भविष्यवाणी की थीं, कि भारत की सभ्यता व चीन की सभ्यता ही सदियों से अभी तक भी उसी भूखंडों में अस्तित्व लिए हुए हैं, जबकि शेष सभ्यताएं यथा मिश्र, यूनान, रोम, ईरान की सभताए नष्ट हो गई है।
वेबीनार मे भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के इतिहासकार डॉ भानु कपिल ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि सूचना - तकनीकी युग में इतिहास लेखन के आयाम बदलते जा रहे है,अब तो इतिहास की अवधारणाएं उसके स्वरूप ,क्षेत्र तथा इसके शिक्षण के उद्देश्यों में भी बदलाव आया है।
इतिहास लेखन की विधाओं पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन तक्षशीला विद्यापीठ संस्थान के निदेशक, एवम् वरिष्ठ इतिहासकार डॉ जी एल मेनारिया ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के समय ब्रिटिश साम्राज्य की गलत नीतियों पर प्रतिकार करते हुए तिलक ने अपने भाषणों व लेखो मे ब्रिटिश सरकार को स्मरण कराया की जब भारत में अकाल पड़ा हुआ था,लाखो लोग पीड़ित थे उस दौरान सरकार ने करोड़ों रुपए एशो आराम पर खर्च किए थे , जिससे देश की जनता मे ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश पैदा हुआ ,जब रोम जल रहा था तब वहा का राजा नीरो चेन की बांसुरी बजा रहा था।
वेबिनार में पाकिस्तान से अमरकोट राजपरिवार के तनवीर जी, अमरीका की मारिया के अतिरिक्त संपूर्ण भारतवर्ष से वरिष्ठ इतिहासकारों ने सहभागिता निभाई जिनमें डॉ अरविंदर सिंह, डॉ अल्पना दुभाषे ,डॉ रिंकू पुवाईया,डॉ बी पी भटनागर, प्रो. संजय स्वर्णकार, डॉ गिरीश नाथ माथुर, डॉ सीमा यादव, डॉ राजेंद्र नाथ पुरोहित, डॉ शारदा देवी, डॉ नाज़नीन ,डॉ अजय मोची, डॉ खिमारम काक, डॉ अरविंदर जोशी, डॉ पूर्णिमा त्रिवेदी, डॉ सूरजमल राव, डॉ विक्रमभाई , प्रो सुशीला शक्तावत, डॉ निमेष चौबीसा ,डॉ एस वी सिंह , डॉ नरेंद्र राठौड़, डॉ पूर्णिमा त्रिवेदी आदि प्रमुख हैं। अंत में औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन बीकानेर की डॉ मेघना शर्मा द्वारा दिया गया।